बात समाज की –: मोमिता की हत्या ने ये तो बता दिया कि समाज चाहें कितना भी तरक्की कर ले, लेकिन कुछ लोगों की मानसिकता अभी तक नहीं बदल सकी. शक्ल से चाहें कोई कितना ही भोला दिखता हो, लेकिन उसके मन में क्या चल रहा है,ये सिर्फ उसका मन और मस्तिष्क ही जान रहा होगा. अगले दो दिन में राखी का त्योहार है, जी हां ये वहीं राखी का त्योहार, जिसमें बहन अपने भाई के कलाई पर राखी बांधती है, और ये वादा लेती की उसकी सुरक्षा के जिम्मा खुद उसका भाई करेगा.
कुछ महिलाएं इस दिन सेना के जवानों को राखी भेजती हैं, क्योंकि उस त्योहार को वो अपने घर नहीं होते. राखी देखकर जवानों के आंखों में यकीनन आंसू आ जाते होंगे. उस राखी का फर्ज वो सेना का जवान निभाता है, और देश की सुरक्षा के लिए अपने जान तक को न्यौछावर कर देता है, ताकि देश के दुश्मन देश की सीमा में प्रवेश ना कर सकें.
लेकिन समाज के अंदर रह रहे उस राक्षस का क्या, उस भेड़िये और पापी गिद्ध का क्या, जिसके मन में पाप चल रहा है.
पाप, ऐसा कि समाज में रहने वालों पर काला धब्बा लगा दे. ऐसा ही मामला कुछ मोमिता के केस में है.
जहां मेडिकल कालेज में अपनी ड्यूटी करने के बाद आराम कर रही चिकित्सक को कुछ समाज को कलंकित करने वालों ने अपना हवश का शिकार बना लिया और बाद में उसकी हत्या कर दी.
एक भगवान, जिसको सिर्फ महसूस किया जाता है और पूजा जाता है तो दूसरा भगवान जो धरती पर रहकर दूसरों के जीवन की रक्षा करने का काम करता है,
अपनों से दूर रहकर लोगों का ईलाज करता है. ऐसा ही एक भगवान तुल्य कार्य में चिकित्सक का कार्य मोमिता निभा रही थी, वो भी समाज के इन कुछ भेड़ियों के हांथों चढ़ गई और फिर समाज के उन भेड़ियों ने इस तरह से नोचा कि फिर वो गहरी निंद में चली गई, जहां से आज तक कोई वापस नहीं आ सका. उस भयावह पल की परिकल्पना कर के देखिए क्या बीत रही होगी उस क्षण, जब उस पर अत्याचार हो रहे होंगे,
उस दुख की आपने क्या कभी परिकल्पना कि है. उस क्षण को सोचिए जब बेचारी दर्द की वजह से पीड़ा में रहते हुए आवाज दे रही होगी कि शायद उसकी मदद करने कोई आ जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है, मौत को सामने देखकर लोग भागना छोड़ देते हैं, ठीक उसी प्रकार से मोमिता के साथ भी हुआ होगा.
राखी के त्योहार आ रहा है, उस भाई के आंसुओं को परिकल्पना करिए , जिसके कलाई पर मोमिता राखी बांधती होगी. उस बाप पर क्या गुजर रहा होगा, जो कभी उस गुड़िया को गोद में खिलाया होगा. उस मां पर क्या गुजर रही होगी, जिसको उसने अपने कोख में 9 महीने तक रखा होगा, और तमाम कष्ट के बावजूद उसको सफलता की सीढ़ी पर देखना चाहती होगी.
आज पूरा देश मोमिता लिए न्याय मांग रहा है, मां-बाप पूरी तरह से स्तब्ध है. मोमिता के न्याय में, गिरफ्तारी के जगह मौत की मांग हो रही है. और ऐसी घटनाओं में बकायदा ऐसे प्रकार के फैसले न्यायलय से होने भी चाहिए, लेकिन क्या, जो दर्द मोमिता ने महसूस किया, वो दर्द दोषी महसूस कर पाएंगे . सवाल यही है कि क्या होगा अब, कितना न्याय और कैसा न्याय मिलता है दरिंदों को ..
इस घटना के एवज में एक सीन याद आता है, जब दक्षिण भारत में महिला पशु चिकित्सक घर लौट रही थी, तो उसको भी पहले हवश का शिकार बनाया गया, फिर उसको मौत की निंद सुला दी गई.उसके बाद बकायदे आग के हवाले कर दिया गया, इसका गुस्सा भी पूरे देश के लोगों में था, और कुछ ही दिन में पुलिस ने सीन रिक्रिएशन किया और भागने के प्रयास में ही उनका खेल खत्म कर दिया.
हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि ऐसे कानून की जरूरत अब समाज के लिए हो गया है. लेकिन फिर भी ये सजा काफी कम होगी, क्योंकि जो दर्द पीड़िता झेल कर मौत को थामती है , उसके सापेक्ष में न्यायालय की ओर से फांसी देना भी एक साधारण मौत की तरह ही होगी. हम मानसिकता क्यों बदल नहीं पा रहे, इसके पीछे समाज में क्या बीमारी है, इसको जानने और पहचानने की जरूरत है. इसलिए तो कह रहा हूं, जब डाक्टर बीटिया ही सुरक्षित नहीं है, तो समाज के पिछड़े और दबे कुचलों का क्या ?