Kerala High Court Orderकेरल हाईकोर्ट का यह निर्णय, जिसमें कोट्टायम बार एसोसिएशन के 28 वकीलों को 6 महीने तक मुफ्त कानूनी सेवाएं देने का आदेश दिया गया है, न्यायालय की गरिमा और न्यायिक प्रक्रिया के प्रति सम्मान बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इस मामले की जड़ें पिछले साल नवंबर में घटित एक घटना से जुड़ी हैं, जब कोट्टायम जिले में कुछ वकीलों ने चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (सीजेएम) विवीजा सेतुमोहन के खिलाफ अपमानजनक नारे लगाए थे। वकीलों के इस समूह का आरोप था कि सीजेएम का व्यवहार अनुचित था और उनके द्वारा एक वकील के खिलाफ जालसाजी का मामला दर्ज करना अनुचित था। इसके विरोध में, वकील अदालत में जाकर नारेबाजी करने लगे, जिससे न्यायालय की गरिमा पर आंच आई।
कोर्ट की कार्यवाही और निर्णय
इस घटना के बाद, हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इन वकीलों के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू की। जब हाईकोर्ट ने इन पर कार्रवाई करने का निर्णय लिया, तो दोषी वकीलों में से 28 ने बिना शर्त माफी मांगने की पेशकश की। हालांकि, केरल हाईकोर्ट ने कहा कि सिर्फ माफी मांगना पर्याप्त नहीं है और माफी के साथ-साथ उन्हें छह महीने तक गरीबों और जरूरतमंदों के लिए मुफ्त कानूनी सेवाएं देनी होगी।
इस मामले के तथ्यों को देखते हुए, हम प्रतिवादी 2 से 29 द्वारा मांगी गई बिना शर्त माफी को स्वीकार करना और उनके द्वारा की गई अवमानना को इस आधार पर समाप्त करना उचित समझते हैं कि वे छह महीने की अवधि के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कोट्टायम को गरीबों और जरूरतमंदों को मुफ्त में अपनी सेवाएं देंगे।
न्यायपालिका की गरिमा की सुरक्षा यह निर्णय न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने और भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं से बचने के लिए एक निवारक उपाय के रूप में देखा जा रहा है।
सामाजिक न्याय की दिशा में कदम अदालत द्वारा वकीलों को गरीबों और जरूरतमंदों के लिए मुफ्त कानूनी सेवाएं देने का आदेश देना, सामाजिक न्याय को प्रोत्साहित करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय यह भी सुनिश्चित करता है कि वकील समाज के कमजोर वर्गों को अपनी सेवाएं प्रदान कर सकें, जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं।
अदालत की चेतावनी
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इस प्रकार की घटना भविष्य में न दोहराई जाए। अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि वकील अपनी नियमित कानूनी प्रैक्टिस जारी रख सकते हैं, लेकिन उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अपनी सेवाएं जरूरतमंदों के लिए समर्पित करे |
केरल हाईकोर्ट का यह आदेश कानूनी पेशेवरों के लिए एक सीख है कि न्यायालय की अवमानना के मामलों में केवल माफी पर्याप्त नहीं है, बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभानी होगी। इस निर्णय ने न्यायालय के सम्मान को पुनः स्थापित करने के साथ-साथ समाज में न्याय की भावना को प्रोत्साहित करने का कार्य किया है।
यह केस कानून के छात्रों और वकीलों के लिए यह सीखने का एक अवसर है कि कैसे न्यायपालिका न केवल कानूनी मामलों को निपटाने में बल्कि समाज में नैतिकता और अनुशासन को बनाए रखने में भी सक्रिय भूमिका निभाती है।
बहुत बढ़िया