ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की असली ताकत सामने आई
हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर ने भले ही पाकिस्तान को सतर्क कर दिया हो, लेकिन भारत की असली ताकत उसकी हाइपरसोनिक मिसाइल परियोजनाओं में छुपी है। DRDO अब ऐसे एडवांस हथियार विकसित कर रहा है जो न केवल रडार को चकमा दे सकते हैं बल्कि पलक झपकते ही लक्ष्य को भेद सकते हैं। भारत अब सिर्फ पारंपरिक हथियारों पर निर्भर नहीं, बल्कि तकनीक आधारित आक्रामक रणनीति की ओर अग्रसर है।
HSTDV: भारत की हाइपरसोनिक तकनीक की नींव
Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle (HSTDV) भारत की स्वदेशी तकनीक का प्रतीक है। यह Scramjet इंजन पर आधारित है, जो हवा से ऑक्सीजन खींचकर उड़ता है। इससे मिसाइल को अतिरिक्त ईंधन की जरूरत नहीं होती। 2020 में इसने Mach 6 की रफ्तार से सफल उड़ान भरी। DRDO इसे एक पूर्ण हाइपरसोनिक हथियार में तब्दील कर रहा है, जिसका लक्ष्य 2026 तक ऑपरेशनल करना है।
ब्रह्मोस-II और SFDR: भविष्य की मिसाइलें तैयार
ब्रह्मोस-II भारत-रूस की संयुक्त परियोजना है, जिसकी रफ्तार Mach 7 तक हो सकती है। यह ज़मीन, हवा और समुद्र से लॉन्च करने योग्य होगा। वहीं SFDR (Solid Fuel Ducted Ramjet) तकनीक भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ाएगी। यह एयर-टू-एयर मिसाइल Astra Mk3 में इस्तेमाल होगी, जो 2025 तक सेवा में आ सकती है।
शौर्य मिसाइल: नया हाइपरसोनिक अवतार
शौर्य पहले से ही भारत की सामरिक ताकत का हिस्सा है, लेकिन अब इसका हाइपरसोनिक वर्जन तैयार किया जा रहा है। यह मिसाइल Mach 7.5 की रफ्तार से उड़ सकती है और ऊपरी वातावरण में ग्लाइड कर सकती है, जिससे दुश्मन की रडार से बच निकलना संभव होता है।
HGV: भारत की सबसे गोपनीय लेकिन सबसे तेज़ तैयारी
Hypersonic Glide Vehicle (HGV) भारत का सबसे रहस्यमय प्रोजेक्ट है। यह Mach 10 से तेज़ रफ्तार से दुश्मन पर वार करेगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह तकनीक भारत को चीन और अमेरिका जैसी महाशक्तियों की बराबरी पर ला सकती है। इसका पहला हथियार संस्करण 2028-30 तक सामने आ सकता है।
DRDO का बजट:
हर साल DRDO को ₹23,000 से ₹25,000 करोड़ तक का बजट मिलता है, जिसमें से हाइपरसोनिक तकनीक पर ₹5,000 करोड़ तक का खर्च किया जा रहा है। यह संकेत है कि भारत अब हथियार खरीदने वाला नहीं, बल्कि उन्हें बनाने वाला राष्ट्र बन चुका है।