NDA में रहकर NDA के खिलाफ? चिराग की दोहरी चाल
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान इन दिनों बिहार की राजनीति में एक अजीब स्थिति में हैं। वो केंद्र में एनडीए सरकार का हिस्सा हैं, लेकिन राज्य में एनडीए के मुखिया नीतीश कुमार पर लगातार हमलावर हैं। आरा से लेकर सारण तक उन्होंने यह ऐलान किया है कि वे 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, और उनका “गठबंधन केवल बिहार की जनता से है।”
बीजेपी के गढ़ में पहुंचकर क्यों गरज रहे हैं चिराग?
चिराग की रणनीति में एक खास बात है — वे बीजेपी के मजबूत गढ़ों, जैसे आरा और सारण में जाकर बयानबाज़ी कर रहे हैं। इसका राजनीतिक संदेश साफ है कि वे बीजेपी पर दबाव बना रहे हैं कि उन्हें सीट बंटवारे में हल्के में न लिया जाए। वहीं, नीतीश कुमार के नेतृत्व में काम कर रहे प्रशासन को वे कानून-व्यवस्था के नाम पर घेरते हुए जनता को सीधे साधने की कोशिश कर रहे हैं।
243 सीटों पर लड़ने का दावा: क्या यह सिर्फ चुनावी दांव है?
243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा सिर्फ आत्मविश्वास नहीं, बल्कि सियासी चेतावनी भी है। चिराग 2020 की तरह इस बार भी यह जताना चाहते हैं कि वे अकेले चुनाव लड़ने में सक्षम हैं। यह बीजेपी को यह याद दिलाने की रणनीति है कि अगर सम्मानजनक हिस्सेदारी नहीं मिली, तो वे फिर से स्वतंत्र लड़ाई के लिए तैयार हैं।
चिराग का असली खेल: पहचान, दबाव और विकल्प
चिराग पासवान की पूरी रणनीति का मकसद है — एक स्वतंत्र और मजबूत नेतृत्वकर्ता की छवि बनाना। वे अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत के सहारे भावनात्मक जुड़ाव बना रहे हैं, युवा वर्ग को जोड़ रहे हैं और यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे न तो किसी गठबंधन में बंधे हैं, और न ही पीछे हटने वाले हैं।
